किशोरों में मोबाइल और गेमिंग की बढ़ती लत: “यह अब आदत नहीं, मानसिक स्वास्थ्य संकट है” — डॉ. गीतेश्वर दीवान

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Growing Addiction to Mobile Phones and Gaming

चंडीगढ़: Growing Addiction to Mobile Phones and Gaming: भारत में किशोर आबादी के बीच मोबाइल फोन और ऑनलाइन गेमिंग की लत एक तेजी से बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है। महामारी के बाद स्क्रीन-टाइम में उछाल और डिजिटल प्लेटफॉर्मों की आसान पहुंच ने समस्या को और गंभीर बना दिया है। चंडीगढ़ के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. गीतेश्वर दीवान (मनोगुरु न्यूरोसाइकेट्री क्लीनिक्स) का कहना है कि आज स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल केवल “बुरा व्यवहार” नहीं, बल्कि “बिहेवियर ऐडिक्शन” बन गया है।
“हम रोज़ ऐसे किशोर देख रहे हैं जो 6 से 10 घंटे मोबाइल पर बिताते हैं और फोन हटाने पर गुस्सा, बेचैनी, चिड़चिड़ापन और नशे के विथड्रॉल जैसे लक्षण दिखाते हैं,” डॉ. दीवान बताते हैं। “ये वही पैटर्न हैं जो जुए या नशीली पदार्थों की लत में दिखाई देते हैं।”

डिजिटल प्लेटफॉर्म और ‘डोपामिन ट्रैप’

डोपामिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है, जो मस्तिष्क में पाया जाता है, और नशे से संबंधित गतिविधियों में इसकी मात्रा बढ़ जाती है। डॉ. दीवान बताते हैं कि ऑनलाइन गेम्स, खासकर “बी.जी.एम.आई.”, “फ़्री फ़ायर” और मल्टीप्लेयर रियल-टाइम गेम्स को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि वे बच्चों को लगातार डोपामिन के रिवॉर्ड देते रहें। “14–15 साल की उम्र में मस्तिष्क नियंत्रण विकसित हो रहा होता है। ऐसे में बच्चे डोपामिन से मिलने वाले रिवॉर्ड्स के कारण बनने वाली लत का मुकाबला नहीं कर पाते,” वे कहते हैं।

इसके परिणामस्वरूप किशोरों में निम्न समस्याएँ तेजी से बढ़ रही हैं —

  • ध्यान में कमी और बेचैनी
  • गुस्सैल और आवेगपूर्ण व्यवहार
  • सामाजिक दूरी
  • स्कूल में प्रदर्शन में गिरावट
  • नींद का बिगड़ना
  • चिंता और अवसाद के शुरुआती संकेत
  • घर पर बढ़ती खामोशी और संघर्ष

डॉ. दीवान के अनुसार इस समस्या का एक बड़ा कारण महामारी के दौरान शुरू हुआ अनियंत्रित स्क्रीन-टाइम है। “ऑनलाइन क्लासेज़ के बहाने बच्चों को बिना निगरानी के फोन मिल गया। अब कई माता-पिता मोबाइल को ‘डिजिटल नैनी’ की तरह इस्तेमाल करते हैं,” वे कहते हैं। वे बताते हैं कि कई माता-पिता तब समस्या समझते हैं जब बच्चे फोन छीनने पर हिंसक प्रतिक्रिया देते हैं, कमरे में बंद रहने लगते हैं या स्कूल जाने से इंकार करने लगते हैं।

चंडीगढ़–ट्राइसिटी में बढ़ते मामले

डॉ. दीवान बताते हैं कि चंडीगढ़, मोहाली और पंचकूला में पिछले दो वर्षों में डिजिटल लत के मामलों में तेज़ बढ़ोतरी हुई है। स्कूलों से शिकायतें आ रही हैं कि बच्चे कक्षा में ध्यान नहीं देते, ब्रेक के दौरान छिपकर गेम खेलते हैं और कई छात्र हर 10–15 मिनट में फोन चेक करने की कोशिश करते हैं। “पंजाब में हम एक साथ दो तरह की लतों से जूझ रहे हैं—वयस्कों में पदार्थ की लत और किशोरों में डिजिटल लत,” डॉ. दीवान कहते हैं।

समाधान क्या है?

  • डॉ. दीवान माता-पिता को ‘डिजिटल डाइट’ लागू करने की सलाह देते हैं—
  • 30 मिनट से अधिक निरंतर स्क्रीन-टाइम न दें
  • रात में फोन बच्चे के कमरे में न रहने दें
  • गेमिंग और सोशल मीडिया के लिए स्पष्ट समय-सीमा तय करें
  • परिवार में बातचीत और आउटडोर गतिविधियों को बढ़ाएँ
  • जरूरत पड़ने पर मनोवैज्ञानिक सहायता लें

“माता-पिता को समझना चाहिए कि 13 साल का बच्चा खुद स्क्रीन-टाइम नियंत्रित नहीं कर सकता। यह जिम्मेदारी वयस्कों की है,” वे कहते हैं।

डिजिटल भारत की तेज़ रफ्तार के बीच किशोर मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह चेतावनी स्पष्ट है—

समय रहते हस्तक्षेप न किया गया तो मोबाइल और गेमिंग की यह लत आने वाले वर्षों में एक गंभीर सामाजिक संकट बन सकती है।